कौन है?
कौन है?
"कौन है?" नंदिनी आधी नींद में थी और अचानक हड़बड़ा कर उठ बैठी।
"मैं हूं।" एक बच्चे की आवाज गूंज उठी।
"मैं कौन?" नंदिनी ने डरते हुए पूछा।
"मां तुमने मुझे क्यों छोड़ा उन झाड़ियों के पीछे?" आज फिर वही आवाज नंदिनी के कानों में गूंजी।
"मैं तुम्हें छोड़ना नहीं चाहती थी, तुम्हें छोड़ना मजबूरी थी मेरी... लोग क्या कहते? अब चले जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो।" नंदिनी ने आधी नींद में ही कहा।
"जब तुमने प्यार करना चुना, अपनी हदें भूलना चुना... लोग तो तब भी वही थे न मां! अब मैं कहां जाऊं मैं तो तुम्हारा ही हिस्सा हूं तुमसे दूर मैं कहीं नहीं जा पाऊंगा!" बच्चे की आवाज वापस गूंजी और नंदिनी कानों पर हाथ रखकर चीखने लगी।
नंदिनी फिर कभी सुकून की नींद नहीं सो पाई। हर रात अपराधबोध उसकी नींद उड़ा देता था...
आयुषी सिंह